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Showing posts from May, 2021

गांव और समाज

गावों की चारित्रिक विशेषताओं में से एक इसकी स्वागत करने की प्रवृत्ति है। शहर की भांति यहां पूंजीगत चकाचौंध और हर दिन एक नए उम्मीद को साधने का संघर्ष नहीं। शहर की तुलना में गांव अत्यधिक शांत और मनोरम लगता है। गांव का परिवेश आपको संवारता है और शहर में लोग परिवेश को हर रोज़ नई शक्ल दे रहे हैं। कभी फ्लाईओवर निर्माण, कभी मेट्रो निर्माण, कभी शॉपिंग माल आदि। शहर रुकता नहीं, यह गतिशील है। संघर्षरत है। जबकि गावों में यह गुण गौण हैं। ग्रामीण जीवन तमाम खुलेपन के बावजूद कई बंदिशों से बंधा रहता है। शहर में तंग गलियां, छोटे घर एवं सड़कों का ट्रैफिक भी आपको इतना नहीं बांधता जितना गावों का पिछड़ापन बांधता है। धार्मिक संलङता अवश्य ही ग्रामीण जीवन की एक सच्चाई है परन्तु यह कतई पिछड़ेपन को तो इंगित नहीं करती। मगर धार्मिक आधार पर रचे हुए आडंबर एवं कुरीतियां ज़रूर ग्रामीण समाज के पिछड़ेपन को परिलक्षित करते हैं। गावों के वातावरण एवं प्राकृत सौंदर्य की भांति यह कुरीतियां कतई मनभावन नहीं लगती। हालांकि अब कई घृणास्पद कुरीतियों का अंत हो चुका है, जातिगत विषमताएं भी पिछली सदी जितनी प्रखर नहीं दिखाई पड़ती। जो दुर